vitta ke strot
एक व्यवसाय उद्यम के लगभग प्रत्येक व्यवसाय चरण में वित्त की आवश्यकता होती है। एमएसएमई अपने परिचालन और साथ ही साथ विस्तार व संवृद्धि के लिए पर्याप्त वित्त की व्यवस्था करने में अक्सर कठिनाई का सामना करते हैं। ये उद्यम विभिन्न विधियों से वित्त जुटा सकते हैं। नीचे कुछ उपाय दिए गए हैं, जिनसे दीर्घावधि एवं अल्पावधि पूँजी जुटाई जा सकती है।
दीर्घावधि पूँजी के स्रोत
लाभ का पुनर्निवेश
लाभप्रद कंपनियाँ सामान्यत: अपने लाभ की पूरी राशि लाभांश के रूप में नहीं बाँटते हैं, बल्कि कुछ अंश आरक्षित निधि में अंतरित कर देते हैं। इसे लाभ का पुनर्निवेश माना जा सकता है। चूँकि लाभ की ऐसी प्रतिधारित राशि कंपनी के शेयरधारकों की होती है, अत: उसे स्वामित्व पूँजी का हिस्सा माना जाता है। लाभ का प्रतिधारण एक प्रकार से व्यवसाय का स्व-वित्तपोषण है। लाभ प्रतिधारित करते जाने से कुछ वर्षों के दौरान अच्छी आरक्षित निधि बन जाती है और कंपनी इसे निम्नलिखित प्रयोजनों के लिए उपयोग कर सकती है :
- उपक्रम का विस्तार
- पुरानी आस्तियों को प्रतिस्थापित करना और आधुनिकीकरण
- स्थायी या विशेष कार्यशील पूँजी आवश्यकताओं की पूर्ति
- पुराने ऋणों का मोचन
कंपनी को वित्त के इस स्रोत के निम्नलिखित लाभ हैं :
- इससे वित्त के बाहरी स्रोतों पर निर्भरता कम हो जाती है।
- इससे कंपनी की ऋण-सुपात्रता में वृद्धि होती है।
- इसके कारण कंपनी कठिन परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम होती है।
- इससे कंपनी की लाभांश नीति को स्थिरता मिलती है।
वाणिज्य बैंकों से ऋण
कंपनियाँ संपत्तियों और आस्तियों की प्रतिभूति के प्रति वाणिज्य बैंकों से मध्यम अवधि के सावधि ऋण प्राप्त कर सकती हैं। आस्तियों के आधुनिकीकरण और पुनरुद्धार के लिए अपेक्षित निधियाँ बैंकों से उधार ली जा सकती हैं। आस्तियों के बंधक को छोड़कर, वित्तीयन की इस विधि के लिए किसी अन्य विधिक औपचारिकता की आवश्यकता नहीं होती है।
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वित्तीय संस्थाओं से ऋण
कंपनियाँ वित्तीय संस्थाओं, जैसे – औद्योगिक वित्त निगम लि., राज्य स्तरीय औद्योगिक विकास निगम, आदि से दीर्घावधि एवं मध्यम अवधि के सावधि ऋण प्राप्त कर सकती हैं। ये वित्तीय संस्थाएँ अनुमोदित योजनाओं और परियोजनाओं के के प्रति अधिकतम 25 वर्ष के लिए ऋण उपलब्ध कराती हैं। मंजूरी के ले सहमत ऋण के प्रति कंपनी की संपत्ति के बंधक या स्टॉक, शेयर, स्वर्ण, आदि के समनुदेशन के माध्यम से प्रतिभूति दी जानी अनिवार्य होती है।
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सार्वजनिक जमाराशियाँ
कंपनियाँ अक्सर अपने शेयरधारकों, कर्मचारियों और आम जनता से उनकी बचतराशियाँ कंपनी के पास जमा करने का अनुरोध करती हैं। कंपनी अधिनियम में यह अनुमति है कि ऐसी जमाराशियाँ तीन वर्ष तक की अवधि के लिए प्राप्त की जा सकती है। कंपनियाँ अपनी मध्यम अवधि और अल्पावधि वित्तीय आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए सार्वजनिक जमाराशियाँ जुटाई जा सकती है। सार्वजनिक जमाराशियों की बढ़ती लोकप्रियता निम्नलिखित के कारण है :
- कंपनियों को इन जमाराशियों पर जो ब्याज देना पड़ता है, वह बैंक ऋण पर दी जाने वाली ब्याजदर से कम होता है।
- यह बैंकों की तुलना में निधि संग्रह का सरल तरीका है, विशेष रूप से ऋम मंदी की अवधि में।
- ये अप्रतिभूत होते हैं।
वाणिज्य बैंकों के विपरीत, कंपनी को ऋण प्राप्त करने के लिए अपनी ऋण-सुपात्रता सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती है।
जोखिम पूँजी
जोखिम पूँजी पूँजी के उस प्रावधान को दर्शाती है, जिसमें प्रदाता उद्यमी का जोखिम बोझ कम करता है, और बदले में, उत्पादक गतिविधि में शामिल समग्र जोखिम का कुछ हिस्सा स्वयं वहन करता है। भारत में व्यापक रूप से प्रयुक्त परिभाषा के अनुसार “जोखिम पूँजी” शब्दपद में ईक्विटी और साथ ही साथ मेज़नीन /अर्द्ध-ईक्विटी वित्तीय उत्पाद, जिसमें ऋण और ईक्विटी दोनों के गुण होते हैं, शामिल होते हैं। जोखिम पूँजी न केवल नवारंभ एवं नवोन्मेषी /तेजी से वृद्धि करने वाली इकाइयों के लिए महत्त्वपूर्ण लिखत है, बल्कि उन कंपनियों के लिए भी महत्त्वपूर्ण है, जो संवृद्धि करना चाहती है। जोखिम पूँजी प्रवर्तक अंशदान को प्रतिस्थापित करती है, जिससे उद्यमी द्वारा लाई जाने वाली पूँजी में कमी होती है। ऐसे मामलों में, जोखिम पूँजी एमएसएमई के लिए पूँजी जुटाने के सर्वाधिक व्यवहार्य विकल्पों में से एक है। एमएसएमई के लिए जोखिम पूँजी जुटाने के उपलब्ध प्रमुख विकल्पों में उद्यम पूँजी, ऐन्जल निवेश तथा सार्वजनिक सूचीबद्धता शामिल हैं।
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शेयर जारी करना
यह सर्वाधिक मह्त्त्वपूर्ण विधि है। शेयरधारक की देयता शेयर के अंकित मूल्य तक सीमित होती है और वह भी सरलता से हस्तांतरणीय होती है। एक निजी कंपनी अपनी शेयर पूँजी के प्रति अंशदान के लिए आम जनता को आमंत्रित नहीं कर सकती है और उसके शेयर भी मुक्त रूप से हस्तांतरणीय नहीं होते हैं। किंतु पब्लिक लिमिटेड कंपनी के लिए, ऐसे कोई प्रतिबंध नहीं हैं। शेयर दो प्रकार के होते हैं :-
- ईक्विटी शेयर : इन शेयरों पर लाभांश की दर उपलब्ध लाभ और निदेशकों को प्राप्त विवेकाधिकार पर निर्भर करती है। अत: कंपनी पर कोई निर्धारित बोझ नहीं होता है। प्रत्येक शेयर को एक मत (वोट) का अधिकार होता है।
- अधिमान शेयर : इन शेयरों पर एक नियत दर पर देय होता है और वह केवल उस स्थिति में देय होता है, जब लाभ कमाया गया हो। अत: कंपनी की वित्तीय स्थिति पर कोई अनिवार्य बोझ नहीं होता है। इन शेयरों को मत (वोट) अधिकार नहीं होता है।
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डिबेन्चर जारी करना
कंपनियों को सामान्यत: डिबेन्चर जारी कर उधार और ऋण लेने की शक्तियाँ प्राप्त होती है। डिबेन्चरों पर अदा की जाने वाली ब्याजदर उसे जारी करने के समय ही स्थिर होती है और वह कंपनी की संपत्ति एवं आस्तियों पर प्रभार के माध्यम से प्रतिभूत होती है, जो भुगतान के लिए आवश्यक सुरक्षा प्राप्त उपलब्ध कराती है। कंपनी को ब्याज का भुगतान करना होता है, चाहे लाभ हो या न हो। डिबेन्चर अधिकतर दीर्घावधि आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जारी किए जाते हैं और इन्हें कोई मताधिकार नहीं होता है।
अल्पावधि सावधि पूँजी के स्रोत
व्यापार उधार
कंपनियाँ विभिन्न आपूर्तिकर्ताओं से उधार पर कच्चा माल, घटक, भांडार और पुर्जे खरीदती हैं। सामान्यत: आपूर्तिकर्ता 3 से 6 माह की अवधि के लिए उधार मंजूर करते हैं और इस प्रकार कंपनी को अल्पावधि वित्त प्रदान करते हैं। इस प्रकार का वित्त उपलब्ध होना व्यवसाय की मात्रा से जुड़ा होता है। जब सामानों का उत्पादन और बिक्री बढ़ती है, तो स्वत: ही खरीदारी की मात्रा बढ़ जाती है और अधिक व्यापार उधार उपलब्ध होता है।
फ़ैक्टरिंग
उधार बिक्री के कारण ग्राहक से किसी कंपनी को देय राशियाँ सामान्यत: अनुमत उधार की अवधि के दौरान अर्थात् देनदार से देयराशियाँ वसूल किए जाने तक, बकाया रहती हैं। बही ऋण किसी बैंक को सौंप दिए जाते हैं और बैंक से अग्रिम रूप में नक़द राशि प्राप्त कर ली जाती है। इस प्रकार, कंपनी से विनिर्दिष्ट प्रभार का भुगतान किए जाने पर देनदार से शेष राशि वसूल किए जाने का दायित्व बैंक अधिगृहीत कर लेता है। अल्पावधि जुटाने की यह विधि फ़ैक्टरिंग कहलाती है। इस प्रयोजन के लिए देय प्रभारों को निधियाँ जुटाने की लागत मानी जाता है।
विनिमय बिल की भुनाई
अल्पावधि वित्त जुटाने के लिए कंपनियाँ इस विधि का व्यापक रूप से उपयोग करती हैं। जब सामान उधार पर बेचा जाता है, तो सामान्यत: सामान के क्रेताओं की स्वीकृति के लिए विनिमय बिल तैयार के किए जाते हैं। ऐसे बिलों को परिपक्वता तिथि तक धारित रखने के बजाय कंपनियाँ बैंक प्रभार (जिसे बैंक का बट्टा कहा जाता है) का भुगतान कर उन्हें वाणिज्य बैंकों से भुना सकती है। बैंक जिस दर पर भुनाई करते हैं, उसका निर्धारण समय-समय पर रिज़र्व बैंक करता है। भुनाई करते समय बिल की राशि में से भुनाई की राशि काट ली जाती है। इस विधि से वित्त जुटाने की लागत वह होती है, जो बैंक बट्टे के रूप में लेते हैं।
एनटीआरईईएस – ई-भुनाई के लिए व्यापारगत प्राप्यराशि इंजन
आपूर्तिकर्ताओं, विशेष रूप से एमएसएमई के खातों की प्राप्यराशियों की ई-भुनाई के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफ़ॉर्म की स्थापना के लिए सिडबी और एनएसई के बीच सहयोग की सहमति हुई है। प्लेटफ़ॉर्म का नाम एनटीआरईईएस है, जो क़ाग़ज-आधारित भौतिक कार्यविधि के स्थान पर ई-व्यापार स्थापित करेगा, जिससे बिल भुनाई के संव्यवहार किफ़ायती, शीघ्रतापूर्ण और अधिक पारदर्शी हो जाएँगे। यह गतिविधि आपूर्तिकर्ताओं विशेष रूप से एमएसएमई की चलनिधि समस्या के प्रभावी और दक्षतापूर्ण समाधान के लिए तैयार किया गया है और इसलिए इसके संव्यवहार इसे स्वपोषित बनाए रखते हैं।
एमएसएमई आज जिन प्रमुख चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, उनमें एक है उपयुक्त लागत पर पूँजी आवश्यकताओं की पूर्ति। एनटीआरईईएस एमएसएमई की इन चुनौतियों का समाधान करने वाला एक अनुपम एवं उत्साहवर्द्धक प्लेटफ़ॉर्म है।
एनटीआरईईएस के बारे में अधिक जानने के लिए
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बैंक ओवरड्रॉफ्ट एवं नक़द उधार
अल्पावधि वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए यह एक आम विधि है, जो कंपनियाँ उपयोग करती हैं। नक़द उधार एक ऐसी व्यवस्था है, जिसके अधीन वाणिज्य बैंक एक निर्दिष्ट सीमा के अंदर समय-समय पर अग्रिम रूप से राशियाँ आहरित किए जाने की अनुमति देते हैं। यह सुविधा भंडार में उपलब्ध सामान-भांडार, या दूसरे हस्ताक्षर के साथ वचनपत्र, या विपणन-योग्य अन्य लिखतों, जैसे सरकारी बांड की प्रतिभूति के प्रति दी जाती है। ओवरड्रॉफ़्ट बैंक के साथ एक अस्थायी व्यवस्था है, जिसमें कंपनी को एक निश्चित सीमा तक बैंक में स्थित अपने चालू जमाखाते से अग्रिम रूपी अधिक राशि आहरित करने की अनुमति हौती है। ओवरड्रॉफ़्ट सुविधा प्रतिभूतियों के प्रति भी दी जाती है। नक़द उधार और ओवरड्रॉफ़्ट पर लगाई जाने वाली ब्याजदर बैंक जमाराशियों पर लगाए जाने वाली दर की अपेक्षा काफी अधिक होती है।
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